Floating Stone In Water: प्रभु श्रीराम हिंदू धर्म में एक प्रमुख आस्था के केंद्र हैं। प्रभु राम से जुड़ी हुई बातें हमें मुख्य रूप से वाल्मीकि रामायण और तुलसी मानस से पता चलती हैं। यूँ तो रामायण की कथाएं जनमानस के बीच प्राचीन काल से ही प्रचलित हैं लेकिन देश-विदेशों के वैज्ञानिकों के लिए सबसे रोचक बिन्दू समुद्र पार करने के लिए वानर सेना द्वारा बनाया गया पुल (Ram Setu) है।
इस पुल (Ram Setu) को विदेशों में ‘एडेम्स ब्रिज’ के नाम से जाना जाता है, वहीं भारत में इसे राम सेतु (Ram Setu) कहा जाता है। यह पुल हिंदूओं के लिए आस्था और विश्वास का प्रतीक है, तो वहीं विज्ञान के लिए शोध का विषय है।
अब इसमें जानने वाली बात ये है कि आखिर समुद्री पत्थर जो काफी भारी होते हैं वे समुद्र में तैरते कैसे रहे। क्या ये कोई दैवीय शक्ति थी कि जिसके कारण वो पत्थर तैरने लगे?
Floating Stone In Water श्रीलंका के मन्नार को जोड़ता है
हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार रामसेतु एक ऐसा पुल है जिसे भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम की वानर सेना द्वारा भारत के दक्षिणी हिस्से, रामेश्वरम में बनाया गया था और जिसका दूसरा किनारा श्रीलंका के मन्नार से जुड़ता है।
क्या है Ram Setu का इतिहास
रामायण के अनुसार जब रावण द्वारा सीता हरण कर लिया गया तो प्रभु श्रीराम की वानर सेना द्वारा समुद्र पार करने के लिए समुद्र में एक पुल बनाया गया। ऐसा माना जाता है कि वानरों की सेना में नल-नील नाम के दो भाई थे। नल-नील जब पानी में पत्थर फेंकते थे तो वे डूबते नहीं थे।
इन्हीं दो भाइयों की मदद से लंका तक पहुचने के लिए पत्थरों (Floating Stone In Water) से रामसेतु (Ram Setu) बनाया जा सका। उस पुल का इस्तेमाल करने के बाद उसे पानी में डूबा दिया गया ताकि कोई उसका दुरूपयोग न करें।
केवल 5 दिनों में तैयार हुआ Ram Setu
माना जाता है कि यह विशाल पुल वानर सेना द्वारा सिर्फ 5 दिनों में ही बना दिया गया था। बताया जाता है कि इस पुल की लम्बाई 30 किलोमीटर और चौड़ाई 3 किलोमीटर थी। ऐसा विशाल राम सेतु (Ram Setu) पानी में तैरने वाले पत्थरों (Floating Stone In Water) द्वारा तैयार किया गया। आखिर क्या कारण था कि कैसे कोई भारी पत्थर पानी पर बिना डूबे तैर सकता है।
क्या है तैरते पत्थरों का रहस्य (Floating Stone)
वैज्ञानिकों द्वारा इस पुल में इस्तेमाल हुए पत्थरों का रहस्य जानने के लिए लम्बा शोध किया गया। शोध में पता चला कि पुल बनाने में जिन पत्थरों का इस्तेमाल हुआ था वे कुछ खास प्रकार के पत्थर हैं जिन्हें “प्यूमाइस स्टोन” कहा जाता है। यह पत्थर ज्वालामुखी (Volcanoes) के लावा से उत्पन्न होते हैं।
आपको बता दें कि जब लावा की गर्मी वातावरण की कम गर्म हवा या फिर पानी से मिलती है तो वे कुछ कणों में बदल जाती है। कई बार यह छोटे कण मिलकर एक बड़े पत्थर का निर्माण कर डालते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार जब ज्वालामुखी का गर्म लावा वातावरण की ठंडी हवा से मिलता है तो हवा का संतुलन बिगड़ जाता है।
लावा में निकलने वाली राख पानी के सम्पर्क में आने की वजह से जम जाती है और पत्थर का रूप ले लेती है। इस पत्थर में मध्यम आकार के गड्ढे होते हैं जिसमें हवा भरती है और जिसके कारण ये विशेष पत्थर पानी में तैरने लगते हैं।
तैरते पत्थर आज भी मिलते हैं
आज भी रामेश्वरम में समुद्रीतट पर कभी-कभी तैरते हुए पत्थर देख कर लोग हैरान हो जाते हैं जिसे लोग प्रभु श्रीराम द्वारा राम सेतु में इस्तेमाल किया हुआ पत्थर ही समझते हैं और उसकी पूजा-अर्चना करते हैं।
वैज्ञानिकों को मिला राम सेतु का प्रमाण
नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन, नासा ने रामसेतु (Ram Setu) की सैटलाइट से काफी तस्वीरें ली हैं। नासा के अनुसार भारत के रामेश्वरम से होकर श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक एक पुल तो बनाया गया था लेकिन कुछ मील की दूरी के बाद इसके पत्थरों के गड्ढों में ज्यादा पानी भरने से वे डूब गए लेकिन इस बात की पूरी संभावना है कि वे आज भी समुद्र के निचले भाग पर मौजूद हैं।