RBI के नए कदम से कैसे सुधरेगा भारतीय बैंकिंग सिस्टम?

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नई दिल्ली, भारतीय रिजर्व बैंक RBI ने 27 जनवरी, 2025 को बैंकिंग प्रणाली में नकदी की कमी को दूर करने और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए कई महत्वपूर्ण उपायों की घोषणा की। इन उपायों में ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO) की खरीद, परिवर्तनीय दर रेपो (VRR) नीलामी और मुद्रा स्वैप नीलामी जैसी योजनाएँ शामिल हैं। इस कदम का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ाना और वित्तीय दबाव को कम करना है।

ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO) के जरिए नकदी की बढ़ोतरी

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RBI ने 60,000 करोड़ रुपये के ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO) की घोषणा की, जो तीन किस्तों में किया जाएगा। इसमें RBI खुले बाजार से सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदेगा, जिससे बाजार में नकदी की आपूर्ति बढ़ेगी और ब्याज दरों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। यह उपाय 30 जनवरी, 13 फरवरी और 20 फरवरी को होने वाली नीलामियों के जरिए लागू किया जाएगा। ओएमओ का उद्देश्य बैंकिंग प्रणाली में तरलता की कमी को दूर करना है और इसका असर व्यापक रूप से आर्थिक स्थिरता पर पड़ेगा।

परिवर्तनीय दर रेपो (VRR) नीलामी से सहायता

इसके अलावा, RBI ने 7 फरवरी, 2025 को 50,000 करोड़ रुपये की परिवर्तनीय दर रेपो (VRR) नीलामी आयोजित करने का भी ऐलान किया। यह नीलामी नकदी की कमी से जूझ रहे ऋणदाताओं को राहत प्रदान करेगी। पहले भी आरबीआई ने इसी प्रकार की नीलामी की थी, जिससे बैंकों को ज़रूरी नकदी उपलब्ध हो सकी। इन नीलामियों का उद्देश्य बैंकों की तरलता जरूरतों को पूरा करना और ऋण देने की प्रक्रिया को आसान बनाना है।

मुद्रा स्वैप नीलामी: डॉलर-रुपया संकट को कम करने की दिशा में कदम

RBI ने 31 जनवरी, 2025 को छह महीने की अवधि के लिए 5 बिलियन डॉलर की USD/INR मुद्रा स्वैप नीलामी की भी घोषणा की। यह कदम रुपये की कीमत को स्थिर रखने के लिए उठाया गया है। भारतीय रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर रहा है ताकि रुपये की कीमत में गिरावट को रोका जा सके और विदेशी निवेशकों की डॉलर खरीदारी को नियंत्रित किया जा सके। इस तरह के कदमों से भारतीय रुपये की स्थिति मजबूत होगी और विदेशी मुद्रा संकट से निपटने में मदद मिलेगी।

बैंकिंग प्रणाली में लिक्विडिटी की स्थिति

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हालांकि, इन उपायों का उद्देश्य बैंकिंग प्रणाली में लिक्विडिटी की कमी को दूर करना है, हाल के दिनों में भारतीय बैंकिंग सिस्टम को भारी नकदी संकट का सामना करना पड़ा है। RBI के आंकड़ों के अनुसार, जनवरी 2025 तक भारतीय बैंकिंग प्रणाली में लिक्विडिटी की कमी 3.13 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच चुकी थी। इसके कारण बैंकों को महंगे डिपॉजिट का बोझ महसूस हो रहा है, जबकि विदेशी फंड्स के द्वारा भारतीय शेयर बाजारों से डॉलर बेचने से भी लिक्विडिटी पर असर पड़ा है।

RBI के अगले कदम: मौद्रिक नीति समिति की बैठक

इन उपायों के पीछे RBI का उद्देश्य सिस्टम में स्थिरता बनाए रखना है। 5 फरवरी, 2025 को होने वाली मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक से पहले ये कदम उठाए गए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ये कदम भारतीय रिजर्व बैंक की आगामी नीतियों और निर्णयों को प्रभावित करेंगे। इसके अलावा, ये उपाय RBI द्वारा सिस्टम में तरलता की स्थिति को नियंत्रित करने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने के प्रयासों का हिस्सा हैं।

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