देवनगरी काशी का प्राचीन काल से ही हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व है, ऐसा माना जाता है कि काशी को भगवान शिव ने अपने त्रिशूल पर धारण किया हुआ है इसलिए काशी में मरने वाला कभी भी नर्क नहीं जाता बल्कि उसे स्वर्ग प्राप्त होता है। काशी प्राचीन काल में शिक्षा का सबसे बड़ा केन्द्र था लेकिन अब देश में Gyanvapi Masjid को लेकर चर्चा बनी हुई है। ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिन्दू पक्ष मानता है कि मस्जिद में कई सबूत मौजूद हैं जो इसके प्राचीन समय में मदिंर होने की ओर इशारा करते हैं।
ज्ञानवापी मस्जिद घटनाक्रम (Gyanvapi Masjid News)
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद कोई नया नहीं बल्कि ये कई साल पुराना विवाद है। अब ये विवाद एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया जब 5 महिलाओं ने मस्जिद परिसर को लेकर पिछले साल अगस्त, 2021 के महीने में वाराणसी की स्थानीय अदालत में एक याचिका दायर की थी। इस याचिका में महिलाओं ने Gyanvapi Masjid परिसर में स्थित श्रंगार गौरी मंदिर के साथ कई विग्रहों में पूजा अर्चना एवं दर्शन की स्वीकृति के साथ सर्वे कराने की मांग की थी।
महिलाओं की याचिका पर अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद में वीडियोग्राफी और सर्वे कराने के आदेश दिए। कोर्ट के आदेश पर काफी रस्साकशी और 2 दिनों के लगातार संघर्ष के बीच जैसे-तैसे आधा अधूरा या सर्वे हुआ परन्तु सोमवार 16 मई 2022 को काफी जद्दोजहद के बाद ज्ञानवापी का सर्वे पूरा हो सका। क्या है ज्ञानवापी का पूरा मामला, पहले ये जान लेते हैं।
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद का इतिहास (Gyanvapi Masjid Controversy)
Gyanvapi Masjid विवाद सबसे पहले सन 1919 में प्रकाश में आया जब स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर जी के पक्षकार ने वाराणसी की स्थानीय कोर्ट में एक याचिका दायर की। उस समय भारत में अंग्रेजी शासन होने के कारण कोर्ट ने इस याचिका को अस्वीकार कर दिया था।
हिंदू पक्ष ने फिर दायर की याचिका
इस वाक्ये के बाद सन 1991 में यह मामला एक बार फिर हिंदू पक्ष ने कोर्ट में दायर किया जिसमें ये कहा गया कि ज्ञानवापी मस्जिद, मंदिर को तोड़कर बनाई गई है इसीलिए वहां फिर से मंदिर बनाने की स्वीकृति दी जाए। इस घटनाक्रम के बाद वर्ष 1998 में ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने का फैसला किया और हाई कोर्ट में सिविल कोर्ट की सुनवाई पर रोक लगा दी। 22 साल तक ज्ञानवापी केस पर कोई सुनवाई नहीं की गई। कई वर्षों बाद 2019 में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर के पक्षकार ने एक बार फिर वाराणसी जिला अदालत में याचिका दायर की।
विरोधी पक्ष का सर्वे का विरोध
जिला अदालत में याचिका दायर होने के बाद ज्ञानवापी परिसर का सर्वे एएसआई (ASI) के द्वारा कराने की मांग की गई लेकिन वर्ष 2020 में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने ज्ञानवापी परिसर का एएसआई द्वारा सर्वे कराने की मांग का विरोध किया। 2020 में ही हिंदू पक्ष ने एक बार फिर सिविल कोर्ट जाने का फैसला किया और ये दलील दी कि हाईकोर्ट ने स्टे को नहीं बढ़ाया है इसलिए इस मामले की सुनवाई फिर से शुरू होनी चाहिए।
5 महिलाओं ने दायर की याचिका
ये सारा घटनाक्रम चल ही रहा था कि पिछले साल अगस्त 2021 में 5 महिलाओं ने वाराणसी के स्थानीय अदालत में मस्जिद परिसर को लेकर वाद दायर किया जिसके परिणामस्वरूप अदालत ने परिसर की वीडियोग्राफी सर्वे कराने का फैसला दिया। इस पहली बार के सर्वे को लेकर कट्टरपंथी वर्ग ने सर्वे करने आई टीम को मस्जिद में प्रवेश भी नहीं करने दिया लेकिन काफी मशक्कत के बाद 16 मई 2022 को सर्वे पूरा हुआ। अब कोर्ट इस पर क्या निर्णय देता है ये तो आने वाले समय में पता चल सकेगा।
ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास (Gyanvapi History)
आईये जानते हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास क्या है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉ राजीव श्रीवास्तव के अनुसार काशी विश्वनाथ मंदिर हिंदुओं का सबसे पवित्रतम स्थान है। ये भगवान राम के युग में था और भगवान कृष्ण के युग में भी विद्यमान था। इसीलिए काशी विश्वनाथ मंदिर की महत्ता सबसे अधिक है।
हिन्दू मंदिरों से लूटी अकूत धन संम्पत्ति
इसके अलावा इतिहास की किताबों में भी काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर काफी कुछ लिखा गया है। इतिहास के अनुसार सन 1194 में मोहम्मद गोरी ने सबसे पहले बनारस पर हमला किया था और इस हमले के दौरान 500 हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर को भी भारी क्षति पहुंचाई गई। काशी विश्वनाथ मंदिर तथा अन्य मंदिरों से इतनी अकूत धन-संपत्ति लूटी गई कि इस सम्पत्ति को 1400 उंटों पर लादकर कर गजनी ले जाया गया।
मोहम्मद गोरी के बाद जौनपुर के शासक महमूद शाह ने भी विश्वनाथ मंदिर पर हमला किया और फिर इस मंदिर पर शाहजहां ने भी हमला किया। कालांतर में औरंगजेब ने सबसे क्रूरतम हमला किया और उसने अप्रैल 1669 अपने गवर्नर अबुल हसन हुक्म देते हुए कहा कि काशी विश्वनाथ परिसर को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया जाए।
मआसिर-ए-आलमगिरी में दर्ज है घटना
इस घटना का जिक्र साकिब खान द्वारा लिखी पुस्तक मआसिर-ए-आलमगिरी में किया गया है। उसमें लिखा है कि अगस्त 1669 में काशी विश्वनाथ मंदिर को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया है साथ उस स्थान पर एक मस्जिद की तामीर कर दी गई है। मआसिर-ए-आलमगिरी में जिस मस्जिद के बारे में बताया गया है ये वही Gyanvapi Masjid है।
एशियाटिक लाइब्रेरी मे सुरक्षित है दस्तावेज़
मआसिर-ए-आलमगिरी, इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) पहले काशी विश्वनाथ मंदिर ही था। औरंगजेब ने जो फरमान अपने गर्वनर को जारी किया था वह फरमान आज भी एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में सुरक्षित है जिस पर 18 अप्रैल 1669 की तारीख भी दर्ज है, इसका मतलब 18 अप्रैल 1669 को ही ये फरमान जारी किया गया था और 2 सितंबर 1669 को मंदिर तोड़ने का काम पूर हुआ और इसकी सूचना औरंगजेब को दे दी गई।
अहिल्याबाई होल्कर ने किया मंदिर पुनर्निर्माण
इतिहास के इस घटनाक्रम के बाद सन 1777 से 1780 के बीच इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने मस्जिद से अलग, इस परिसर में विश्वनाथ मंदिर का पुननिर्माण कराया, जिसका पुनः जीर्णोद्धार वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया।
हिन्दू पक्ष की दलील
हिन्दू पक्ष के अनुसार, मस्जिद परिसर में स्थित विशाल नंदी की प्रतिमा भी इस बात का सबूत है कि वहां किसी समय विश्वनाथ मंदिर ही था क्योंकि हर शिव मंदिर में नंदी का मुख भगवान शिव की ओर ही होता है परंतु काशी विश्वनाथ परिसर में ऐसा नहीं है।
नंदी का मुख मस्जिद की ओर
हिन्दू पक्ष के अनुसार, परिसर में स्थित नंदी का मुख मंदिर की बजाय मस्जिद की ओर है जो इस बात का बड़ा प्रमाण है। यही नहीं मस्जिद का नाम भी इसका अन्य सबूत है। विश्व की कोई भी मस्जिद ऐसी नहीं है जिसका नाम संस्कृत में हो। ज्ञानवापी (Gyanvapi Hindi Meaning) एक संस्कृत का शब्द है जो ज्ञान और वापी से मिलकर बना है। वापी का शाब्दिक अर्थ है तालाब, यानि ज्ञान का तालाब। इन संस्कृत शब्दों का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है।
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एक अन्य सबूत में मस्जिद (Gyanvapi Mosque) के पीछे वाली दीवार इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। औरंगजेब के सैनिकों द्वारा जब पीछे की दीवार को तोड़ा नहीं जा सका तो मंदिर की दीवार पर ही मस्जिद खड़ी कर दी गई।
तहखानों में हिन्दू देवताओं की मूर्तियों का संदेह
हिन्दू पक्ष के अनुसार, मस्जिद परिसर में स्थित तहखानों में भी हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियां होने का संदेह है। विरोधी पक्ष द्वारा तहखानों का सर्वे नहीं करने दिया गया। विरोधी पक्ष को आखिर किस बात का डर सता रहा है। हिन्दू पक्ष के अनुसार, तहखानों में मंदिर के ठोस प्रमाण मौजूद हैं। इतिहास इस बात का गवाह है कि मुस्लिम शासकों द्वारा हिंदुओं के मंदिर ध्वस्त किए गए, जजिया लगाया गया और ताकत के बल पर हिन्दुओं को धर्म परिवर्तन कराया गया।