इस मन्दिर की देवी को अर्पित की जाती है जूते-चप्पलों की माला – अजीब किन्तु सत्य

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Lakkamma Devi Temple: हिन्दू धर्म विविधताओं से भरा हुआ है। पूजा विधि-विधान में भी ये विविधताएं देखने को मिलती हैं। इनके बारे में सुनकर आप हैरान हो जाएंगे। आपने, मंदिरों में देवी-देवताओं को खुश करने के लिए लोगोें को अनेक तरह का भोग चढ़ाते हुए देखा होगा और आपने ये भी देखा होगा कि पूजा स्थल से जूते-चप्पल हमेशा दूर रखे जाते हैं लेकिन क्या आपने कभी ये कल्पना की है कि मंदिर में किसी देवी को जूते-चप्पलों की माला भी अर्पित की जाती होगी?

जी हाँ, ये आपको आश्चर्यचकित अवश्य करेगा किन्तु ये बिल्कुल सही है। हमारे देश में एक ऐसा मंदिर भी है जहां चप्पलों को प्रसाद के रूप मे अर्पित किया जाता है। ये बहुत ही ज्यादा हौरान करने वाली बात है कि किसी मंदिर में जूते-चप्पल अर्पित किये जाऐं? आखिर इसके पीछे क्या कारण है? तो आइये जानते हैं कहाँ स्थित है यह मंदिर और किन कारणों की वजह से यहाँ इस तरह की परम्परा को निभाया जाता है?

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Lakkamma Devi Temple में समर्पित चप्पलों की माला

लक्कम्मा देवी (Lakkamma Devi Temple) का मंदिर कनार्टक के गुलबर्ग जिले में स्थित है। माता लक्ष्मी को समर्पित लक्कम्मा मंदिर अनोखी पूजा विधि के लिए जाना जाता है। यहाँ की एक गजब परंपरा है इस मदिर में देवी को चप्पल-जूते की माला अर्पित की जाती है। कहा जाता है कि इस मंदिर में देवी को श्रृंगार, फूल-पत्तियों की माला या अन्य सामग्री नहीं बल्कि जूते-चप्पलों की माला भेंट की जाती है।

जोड़ों का दर्द ठीक हो जाता है

यहाँ दूर-दूर से भक्त माता लक्कम्मा को जूते-चप्पल अर्पित करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर (Lakkamma Devi Temple) में जूते-चप्पलों की माला अर्पण करने से पैर और जोड़ो का दर्द पूरी तरह ठीक हो जाता है। बहुत से भक्त मन्नत पूरी होने पर माता लक्कम्मा को जूते-चप्पलों की माला अर्पित करते हैं। आपको बता दें कि मंदिर के परिसर में एक बड़ा सा नीम का पेड़ है जिसपर भक्त जूते-चप्पल बांधते हैं और प्रार्थना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस नीम के पेड़ में चप्पल बाँधने से सारी मनोकामनाऐं पूरी हो जाती हैं।

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बैलों की बलि देने का इतिहास

पौराणिक कथाओं के अनुसार पूराने समय में यहां बैलों की बलि दी जाती थी लेकिन अब सरकार ने बैलों की बलि पर पाबंदी लगा दी है। स्थानीय लोगों के मुताबिक जब से यहां बैलों की बलि पर पाबंदी लगा दी गई है, तब से यहां श्रद्धालु चप्पल जूते चढ़ाने लगे और जिसके बाद धीरे-धीरे ये परंपरा बन गई जो आज तक जारी है।

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ऐसा माना जाता है कि एक बार बैल की बलि न दी जाने पर माँ क्रोधित हो गई, तब एक भक्त द्वारा माँ को चप्पल अर्पित की और माँ उससे प्रसन्न हो गई। तभी से माँ को चप्पल अर्पित की जाती है।

फूटवीयर फेस्टिवल का आयोजन

इसके अलावा यहां दिवाली के बाद चप्पलों के मेले का आयोजन भी किया जाता है जिसमें लोग चप्पल और सेन्डल पेड़ में टांग देते हैं। इस मेले को फूटवीयर फेस्टिवल के नाम से जाना जाता है।

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