Nikhil Kamath के नए पॉडकास्ट में हिंदी का इस्तेमाल: कर्नाटका में बवाल!

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नई दिल्ली, Nikhil Kamath, जो Zerodha के सह-संस्थापक हैं, अपने नए पॉडकास्ट “डब्ल्यूटीएफ इज विद निखिल कामथ” के कारण चर्चा में हैं। हाल ही में इस पॉडकास्ट के एक टीज़र क्लिप ने कन्नड़ भाषा के प्रति विवाद को जन्म दिया है। इस क्लिप में निखिल कामथ और उनके अतिथि हिंदी में बातचीत करते हुए नजर आ रहे हैं, जिसे लेकर कर्नाटक के कन्नड़ भाषी लोग नाराज हो गए हैं।

पॉडकास्ट में हिंदी का उपयोग

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Nikhil Kamath के पॉडकास्ट के एक छोटे से टीज़र क्लिप में वे बेंगलुरु में आयोजित एक स्टार्टअप सम्मेलन के दौरान अपने अतिथि से हिंदी में बातचीत करते हुए दिख रहे हैं। इस बातचीत के दौरान निखिल अपने अतिथि को उनकी पिछली मुलाकात की याद दिलाते हैं, जब उन्होंने सम्मेलन में सवाल पूछा था। इस क्लिप में हंसी-मजाक भी हुआ, और यह चर्चा तेज हो गई। हालांकि, जिस भाषा में ये बातचीत हो रही थी, वह बात कर्नाटका के कन्नड़ भाषी लोगों को नापसंद आई।

कन्नड़ भाषियों की नाराजगी

कर्नाटक में खासकर कन्नड़ भाषी यूजर्स ने Nikhil Kamath के इस पॉडकास्ट में हिंदी का इस्तेमाल करने पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है। सोशल मीडिया पर यूजर्स ने इसे कन्नड़ भाषा की उपेक्षा और हिंदी के बढ़ते प्रभाव के रूप में देखा। कई यूजर्स ने अपने विचारों को साझा करते हुए लिखा कि कन्नड़ भाषी लोग अपनी भाषा को सम्मान देने के बजाय हिंदी को महत्व देते हैं।

एक यूजर ने तो यह तक लिख दिया, “एक कन्नड़िगा को हिंदी में बोलते हुए सुनना दुखद है। वे अंग्रेजी में क्यों नहीं रह सकते?” इसके साथ ही अन्य यूजर्स ने यह भी आरोप लगाया कि हिंदी और अंग्रेजी को प्राथमिकता देने वाले लोग कन्नड़ भाषा की उपेक्षा करते हैं।

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इस विवाद का केंद्र बिंदु

कर्नाटक के यूजर्स ने इस विवाद में अपनी पहचान और अपनी मातृभाषा की अहमियत को लेकर भी बात की। एक यूजर ने कहा कि वह Nikhil Kamath और उनके अतिथि से उम्मीद करते थे कि वे कन्नड़ में बात करें, क्योंकि वे दोनों कन्नड़ हैं। इसके बावजूद, उन्हें हिंदी और अंग्रेजी में बात करते हुए देखा गया, जिससे उन्हें निराशा हुई।

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कन्नड़ और हिंदी की स्थिति

यह विवाद एक बड़े सामाजिक और भाषाई मुद्दे का संकेत देता है। बेंगलुरु जैसे शहरों में, जहां पर एक साथ कई भाषाएं बोली जाती हैं, वहां के लोगों को अपनी मातृभाषा की पहचान और उसे बचाए रखने का डर बना रहता है। खासकर उन लोगों को जो अपनी मातृभाषा से जुड़ाव महसूस करते हैं, उनके लिए यह बहुत बड़ी बात होती है कि अपनी भाषा का सम्मान किया जाए।

किसे मिला समर्थन और किसे आलोचना?

यह मामला न सिर्फ कर्नाटक के लोगों के बीच बहस का कारण बना, बल्कि उन गैर-कन्नड़ भाषी लोगों के लिए भी एक संदेश बन गया जिन्होंने अपनी मातृभाषा को न तो सीखा और न ही सम्मान दिया। एक यूजर ने यह भी कहा कि बेंगलुरू में जन्मे और पले-बढ़े लोग, जो हिंदी बोलने में सक्षम हैं, लेकिन कन्नड़ भाषा नहीं सीखते, उन्हें इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

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