Places Of Worship Act पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा निर्णय, धार्मिक विवादों में नया मोड़

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नई दिल्ली, गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की सिविल अदालतों को पूजा स्थलों के स्वामित्व और शीर्षक को चुनौती देने वाले मुकदमों पर तत्काल प्रभाव से कार्रवाई करने से रोक दिया। कोर्ट ने कहा कि कोई नया मुकदमा इस तरह के मामलों में दाखिल नहीं किया जा सकेगा, और जिन मामलों में सुनवाई चल रही है, वहां भी अगली तारीख तक कोई नया आदेश नहीं दिया जा सकता। इस फैसले से धार्मिक विवादों को लेकर चल रहे कई मुकदमों को रोकने में मदद मिलेगी।

ज्ञानवापी और कृष्ण जन्मभूमि विवाद पर असर

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सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का सीधा असर वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मंदिर सहित अन्य विवादित धार्मिक स्थलों पर चल रहे मुकदमों पर पड़ेगा। कोर्ट ने बताया कि कम से कम 10 स्थानों पर ऐसे मुकदमे लंबित हैं। इसमें प्रमुख विवाद वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर-शाही ईदगाह मस्जिद से संबंधित हैं।

Places Of Worship Act, 1991

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले से पहले Places Of Worship Act, 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर भी सुनवाई की। यह अधिनियम उस समय लागू हुआ जब अयोध्या विवाद ने तूल पकड़ा था। इसके अनुसार, 15 अगस्त 1947 तक मौजूद पूजा स्थलों का स्वरूप वैसा ही बना रहेगा, जैसा कि वह दिन था। केवल अयोध्या में राम जन्मभूमि पर चल रहे मुकदमे को छोड़कर, यह नियम अन्य विवादित स्थलों पर भी लागू होता है।

धार्मिक ताना-बाना और संविधानिक विवाद

इस अधिनियम के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें इसे न्यायिक समीक्षा के अधिकार का उल्लंघन बताया गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह अधिनियम संविधान के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है। उनके मुताबिक, इस अधिनियम को खत्म किया जाना चाहिए, क्योंकि यह न्यायिक हस्तक्षेप को रोकता है और संविधान की बुनियादी विशेषताओं का उल्लंघन करता है।

अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाएं

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जून 2020 में, लखनऊ के विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ ने इस अधिनियम को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसके बाद जमीयत उलमा-ए-हिंद और काशी के तत्कालीन राजघराने के प्रतिनिधियों ने भी इस मामले में हस्तक्षेप की अनुमति मांगी थी। जमीयत का कहना था कि इस मुद्दे को उठाने से मुस्लिम समुदाय में डर पैदा होगा और इससे भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को खतरा होगा।

मस्जिद समितियों का विरोध

वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के प्रबंधन द्वारा भी इस मामले में हस्तक्षेप आवेदन दायर किया गया। मस्जिद प्रबंधन ने अदालत से अनुरोध किया कि इस तरह की याचिकाओं को अनुमति देना देश में हिंसा और धार्मिक तनाव को बढ़ावा दे सकता है। इसके उदाहरण के रूप में उत्तर प्रदेश के संभल जिले में हुई हिंसा का हवाला दिया गया, जहां अदालत ने बिना उचित प्रक्रिया के सर्वेक्षण के आदेश दिए थे।

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