Hindi Diwas Kab Manaya Jata Hai | विश्व हिन्दी दिवस और राष्ट्रीय हिन्दी दिवस में अंतर
आज हम इस आर्टिकल में आपको बताने जा रहे हैं Hindi Diwas Kab Manaya Jata Hai इसके साथ ही हम बताऐंगे कि विश्व हिन्दी दिवस और राष्ट्रीय हिन्दी दिवस में क्या अंतर है। दोनों को अलग-अलग दिन पर क्यों मनाया जाता है। साथ ही हम बताऐंगे कि हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बन सकी। हिन्दी का महत्व और उत्पत्ति आदि के साथ कई ऐसी जानकारियां जो Hindi Diwas के रूप में हर व्यक्ति को जानना आवश्यक हैं।
- Hindi Diwas Kab Manaya Jata Hai
- 14 सितंबर को क्यों मनाते हैं Hindi Diwas?
- हिंदी दिवस (Hindi Diwas) का महत्व
- हिंदी दिवस मनाये जाने का उद्देश्य
- हिंदी दिवस पर होने वाले कार्यक्रम
- विश्व हिंदी दिवस (Vishwa Hindi Diwas)
- राष्ट्रीय हिंदी दिवस और विश्व हिंदी दिवस में अंतर
- हिंदी नहीं बन सकी राष्ट्रभाषा
- भारत में 22 भाषाओं को मिली है मान्यता
- बिहार ने अधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को अपनाया
- भारत में दर्जा प्राप्त भाषाऐं
- भारत के अलावा विदेशों में भी बोली जाती है हिंदी
- भारत के अलावा इस देश की भी राजभाषा है हिंदी
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति
- किसे कहा जाता है हिंदी का जनक
- हिन्दी को लेकर बदल रही है सोच
Hindi Diwas Kab Manaya Jata Hai
भारत में हर साल 14 सितंबर के दिन ‘हिंदी दिवस’ (Hindi Diwas) मनाया जाता है और वहीं 10 जनवरी को पूरे विश्व में ‘हिंदी दिवस’ (Vishwa Hindi Diwas) मनाया जाता है। हिंदी को भाषा की जननी, साहित्य की गरिमा और जन की भाषा भी कहा जाता है। देश में अंग्रेज़ी के चलन पर रोक लगाने और हिंदी भाषा के विकास और इसके प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए ‘हिंदी दिवस’ मनाया जाता है।
14 सितंबर को क्यों मनाते हैं Hindi Diwas?
हिंदी भारत की राजभाषा के अलावा सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भी भाषा है और 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में इसे राजभाषा का दर्जा दिया गया था जिसके बाद हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अनुरोध पर 1953 से हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
हिंदी दिवस (Hindi Diwas) का महत्व
सन 1949 में भारत की संविधान सभा द्वारा हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया था उसके बाद सन 1950 में अनुच्छेद 343 के अनुसार, देवनागिरी लिपी में लिखी हुई हिंदी को देश की अधिकारिक भाषा माना गया। हिंदी के प्रचार के लिए 14 सितंबर को ‘हिंदी दिवस’ मनाया जाने लगा। भारत में हिंदी का विकास करने के लिए इसे काफी बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। एक शोध में पाया गया है कि हिंदी भाषा, दुनिया में सबसे ज्यादा लोकप्रिय और बोली जाने वाली भाषा है हिंदी से पहले ‘मंदारिन’ सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा थी।
हिंदी दिवस मनाये जाने का उद्देश्य
हिंदी दिवस मनाये जाने का उद्देश्य, जन-जन तक हिंदी भाषा का ज्ञान कराना और इसका विकास कराना है। आज के युग में जहां हर कोई अंग्रेज़ी में बात करना चाहता है तो हिंदी दिवस के दिन सभी सरकारी दफ्तरों में लोगों को अंग्रेज़ी की जगह हिंदी का उपयोग करने को कहा जाता है।
हिंदी दिवस पर होने वाले कार्यक्रम
हिंदी दिवस के दिन लोगों को हिंदी के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए स्कूल, कॉलेजों, सरकारी विभागों में कई तरह की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं और पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन किया जाता है। हिंदी से जुड़े कई पुरस्कार जैसे ‘राष्ट्रभाषा कीर्ति पुरस्कार’ और ‘राष्ट्रभाषा गौरव पुरस्कार’ दिए जाते हैं। राष्ट्रभाषा गौरव पुरस्कार लोगों को, तो वहीं राष्ट्रभाषा कीर्ति पुरस्कार विभाग या समिति को दिया जाता है।
विश्व हिंदी दिवस (Vishwa Hindi Diwas)
पूरी दुनिया में हिन्दी का विकास करने और इसके प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई थी। 10 जनवरी 1975 को नागपुर में पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित किया गया था और तभी से इस दिन को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य विदेशों में हिंदी के प्रति जागरुकता पैदा करना, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पेश करना और विश्व भाषा के रुप में पेश करना है। विदेशों में भारत के दूतावास मुख्य रूप से इसे मनाते हैं।
राष्ट्रीय हिंदी दिवस और विश्व हिंदी दिवस में अंतर
भारत विविधताओं का देश है और यहां कई भाषाएं बोली जाती हैं। जब देश 1947 में आजाद हुआ था तो उस वक्त बड़ा सवाल खड़ा हुआ कि भारत की राष्ट्रभाषा कौन सी होगी। काफी विचार-विमर्श के बाद हिंदी को नए राष्ट्र की राष्ट्रभाषा के रूप में चुना गया लेकिन तब हिंदी के खिलाफ दक्षिण भारत में काफी विरोध हुआ।
इसी विरोध के चलते संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी को राष्ट्र की अधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया जिसके बाद 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस दिन के महत्व को देखते हुए 14 सितंबर को हिंदी दिवस घोषित किया।
हिन्दी दिवस 14 सितंबर तो वहीं विश्व हिंदी दिवस हर साल 10 जनवरी को मनाया जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए साल 2006 से इसे हर साल मनाए जाने की घोषणा की थी। हालांकि 10 जनवरी 1975 को नागपुर में पहली बार विश्व हिंदी दिवस के लिए सम्मेलन का आयोजन किया गया था लेकिन तब कोई आधिकारिक सूचना जारी नहीं की गई थी।
आशा है कि आपको हमारा ये आर्टिकल Hindi Diwas Kab Manaya Jata Hai पसंद आ रहा होगा। चूंकि अधिकतर लोग ये जानते हैं कि हिंदी हमारे देश की राष्ट्रभाषा है लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हिंदी हमारे देश की राष्ट्रभाषा नहीं है बल्कि ये राजभाषा अर्थात काम काज करने की भाषा है।
हिंदी नहीं बन सकी राष्ट्रभाषा
भारत विविधताओं का देश है और यहां भाषाओं में भी कई प्रकार की विविधताएं देखने को मिलती हैं जैसे – पंजाबी, गुजराती, राजस्थानी, मिजो, उर्दू, मलयाली, कन्नड़ असमिया, बंगाली आदि। भारत में करीब 121 भाषाएं बोली जाती हैं चूंकि देश में हिंदी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है इसलिए महात्मा गांधी ने इसे जनमानस की भाषा कहा था और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत भी की थी लेकिन दक्षिण भारत के राज्य हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के पक्ष में नहीं थे।
राष्ट्रभाषा को चुनने के लिए लंबी बहस और विरोघ भी हुए और इसके चलते ये फैसला हुआ कि हिंदी भारत की राजभाषा होगी, राष्ट्रभाषा नहीं और संविधान लिखे जाने के बाद 15 साल (1965) तक राजकाज के सभी काम अंग्रेज़ी भाषा में किए जाएंगे हालांकि हिंदी समर्थकों ने अंग्रेजी का विरोध किया।
चूंकि 1965 तक राष्ट्रभाषा पर फैसला लेना था, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का फैसला ले लिया लेकिन दक्षिण भारत में इसका पुरजोर विरोध होने लगा, सड़कों पर हिंदी की किताबें जलाई जाने लगीं, तमिल भाषा के लिए कई लोगों नें अपनी जानें तक दे दीं, जिसके बाद कांग्रेस वर्किंग कमेंटी नर्मी दिखाते हुए फैसला लिया कि राज्य सरकारें अपने यहां काम-काज में इस्तेमाल होने वाली भाषा चुन सकती हैं लेकिन अंग्रेज़ी और हिंदी को केंद्रीय स्तर पर कामकाज की भाषा चुना गया हालांकि इतने विरोध के बाद हिंदी राष्ट्रभाषा बनने से रह गई।
भारत में 22 भाषाओं को मिली है मान्यता
जैसा कि हमने बताया कि भारत में करीब 121 भाषाएं बोलीं जाती हैं लेकिन इनमें से केवल 22 भाषाओं को आधिकारिक दर्जा प्राप्त है जिसमें हिंदी और अंग्रेज़ी भी शामिल है।
बिहार ने अधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को अपनाया
उत्तर भारत की ज्यादातर आबादी हिंदीभाषी है। चाहे वो उत्तर प्रदेश हो या मध्य प्रदेश, या फिर बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड इन सभी राज्यों में हिंदी भाषा को अधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया गया है लेकिन बिहार देश का ऐसा पहला राज्य बना जिसने केवल हिन्दी को अधिकारिक भाषा के रूप अपनाया था।
भारत में दर्जा प्राप्त भाषाऐं
संस्कृत, हिंदी, सिंधी, मैथली, संथाली, मराठी, मलयालम, बोड़ो, पंजाबी, मणिपुरी, बांग्ला, नेपाली, तेलगू, तमिल, डोगरी, गुजराती, असमिया, कोंकड़ी, कन्नड़, कश्मीरी, उर्दू, और उड़िया।
भारत के अलावा विदेशों में भी बोली जाती है हिंदी
भारत में करीब 44% लोग हिंदी बोलते हैं वहीं अगर पूरे विश्व की बात करें तो करीब 80 करोड़ लोग हिंदी बोल या फिर समझ सकते हैं। भारत के अलावा पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, श्रीलंका, थाईलैंड, कनाडा, म्यामार, इंडोनेशिया, चीन, जापान, दक्षिण अफ्रीका, मॉरिशस, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैंड, यमन, युगांडा और त्रिनाड एंड टोबैगो हैं जहां अच्छी खासी मात्रा में हिंदी भाषी लोग रहते हैं।
भारत के अलावा इस देश की भी राजभाषा है हिंदी
क्या आपको पता है कि भारत के अलावा एक और देश है जहां की राजभाषा भी हिंदी है जी हां दक्षिण प्रशांत महासागर के मेलोनेशिया का द्वीप देश है ‘फिजी’ जहां की आधिकारिक भाषा हिंदी है, भारत की तरह यह देश भी ब्रिटेन सरकार की गुलामी का शिकार रहा था।
ब्रिटेन सरकार ने इसे अपने कब्जे में लेकर इसे अपना उपनिवेश बना लिया और मजदूरी के लिए यहां भारत से भारतीय मजदूरों को लेकर आए जिनसे गन्ने की खेती करवाई जाती थी। फिजी में अंग्रेजी, फिजी हिंदी आदि कई भाषाएं बोली जाती हैं। यहां बोली जाने वाली हिंदी, अवधी और भोजपुरी का समावेश है।
हिंदी भाषा की उत्पत्ति
हमारे आर्टिकल Hindi Diwas Kab Manaya Jata Hai में अब बात करते हैं हिन्दी की उत्पत्ति की। हिंदी भाषा का इतिहास लगभग हजार वर्षों पुराना है। संस्कृत भारत की सबसे प्राचीन भाषा मानी जाती है जिसे आर्य या देवभाषा भी कहते हैं। हिंदी को संस्कृत की उत्तराधिकारिणी माना जाता है और कहा जाता है कि हिंदी का जन्म संस्कृत से हुआ है।
माना जाता है कि भारत में संस्कृत 1500 ई. पूर्व से लेकर 1000 ई. पूर्व तक रही जिसे दो भागों में विभाजित किया गया, वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत। वेदों की रचना वैदिक संस्कृत में हुई है जिसमें वेद और उपनिषद का जिक्र होता है। वहीं दर्शन ग्रंथों की रचना लौकिक संस्कृत में हुई है। रामायण, महाभारत, नाटक, व्याकरण आदि लौकिक संस्कृत में लिखे गए हैं। संस्कृत के बाद पालि भाषा आयी । 500 ई. पूर्व से पहली शताब्दी तक पालि भाषा रही और इसमें बौध्द ग्रंथों की रचना हुई।
पालि के बाद प्राकृत भाषा का उद्भव हुआ। प्राकृत भाषा पहली ई. से लेकर 500 ई. तक रही। इसमें जैन साहित्य लिखे गए। इसके बाद पहली ईसवी आते-आते यह बोलचाल की भाषा में परिवर्तित हुई और इसको प्राकृत की संज्ञा दी गई। उस समय में आम बोलचाल की प्राकृत भाषा कहलाई।
ऐसा माना जाता है कि हिंदी भाषा का विकास अपभ्रंश से हुआ। हिंदी से ही कई और आधुनिक भारतीय भाषाओं और उपभाषाओं का जन्म हुआ, जैसे शौरसेनी (पश्चिमी हिन्दी, राजस्थानी और गुजराती), ब्राचड़ (सिन्धी), खस (पहाड़ी), पैशाची (लंहदा, पंजाबी), महाराष्ट्री (मराठी), मगधी (बिहारी, बांग्ला, उड़िया, असमिया), अर्ध मागधी (पूर्वी हिन्दी) हैं।
वहीं कई विद्वान मानते हैं कि हिंदी का उद्भव अवहट्ट से हुआ। अवहट्ट जिक्र मैथिल के महान कवि कोकिल विद्यापति की ‘कीर्तिलता’ में आता है। माना जाता है कि देश के कवियों ने अपनी वाणी को जन-जन तक पहुंचाने के लिए हिंदी भाषा का इस्तेमाल किया। वहीं अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में भी हिंदी और हिंदी पत्रकारिता की भूमिका अहम रही थी जिसके बाद महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू सहित कई बड़े नेता हिन्दी को राष्ट्रभाषा के तौर पर देखने लगे थे।
किसे कहा जाता है हिंदी का जनक
सन 1850 में काशी में जन्मे ‘भारतेंदु हरिश्चंद्र’ को आधुनिक हिंदी का ‘हिंदी का जनक’ कहा जाता है। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ ‘भारतेन्दु काल’ से माना जाता है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र बहुमुखी प्रतिभा से धनी साहित्यकार थे। हिंदी में नाटकों का प्रारंभ ही भारतेंदु से माना जाता है।
वह कवि, नाटककार, निबंधकार एवं पत्रकार सब एक साथ थे। इन सभी क्षेत्रों में उन्होंने कई योगदान दिए इसके अलावा वो एक सच्चे देशभक्त भी थे अपनी देश भक्ति के कारण उन्हें अंग्रेज़ी हुकूमत का कोपभाजन बनना पड़ा। उनकी लोकप्रियता को देखते हुए 1880 में काशी के विद्वानों ने उन्हें ‘भारतेन्दु’ की उपाधि दी, जो आगे चलकर उनके नाम का पर्याय बना। भारतेंदु ने मात्र 34 साल की उम्र में ही विशाल साहित्य की रचना कर दी थी और उनका रचनाकर्म पथ प्रदर्शक बन गया।
हिन्दी को लेकर बदल रही है सोच
आजकल काम–काज से लेकर आम बोलचाल की भाषा में हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी को तवज्जो दी जाने लगी है। बड़े हों या बच्चे हर कोई अंग्रेजी में ही बात करना आपना स्टेटस सिंबल समझता है। हिंदी बोलने वालों का गंवार समझा जाता है। माता–पिता भी बच्चों को अंग्रेजी में ही शिक्षा देने पर जोर देते हैं।
भारत के बच्चे अपनी ही भाषा पढ़ लिख नहीं पाते। हमें समझना होगा कि हम हिंदुस्तानी हैं। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं बन सकी लेकिन राजभाषा तो है हमें इसके महत्व को समझना होगा और हमें ये भी समझना होगा कि हिंदी हमारा मान है और इसके मान को बनाए रखना हर भारतीय का कर्तव्य है। हर माता–पिता को अपने बच्चे को, अंग्रेजी के ज्ञान के साथ-साथ हिंदी का ज्ञान भी जरूर देना चाहिए और उन्हें अपने बच्चों के हिंदी का महत्व समझाना चाहिए।
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