Vanvaas Movie Review: परिवार के साथ देखें यह फिल्म, आपके दिल को छू जाएगी।

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Vanvaas Movie Review: नई दिल्ली, आज के डिजिटल युग में, जहां लोग मोबाइल और सोशल मीडिया के कारण परिवार से दूर हो गए हैं, ऐसी फिल्में बहुत जरूरी हो जाती हैं। यह कहानी आपको रिश्तों की अहमियत का अहसास कराती है। फिल्म के एक भावुक सीन में परितोष त्रिपाठी अपने पिता बने नाना पाटेकर की तस्वीर पर माला चढ़ाते हुए कहते हैं, “बाबूजी अब नहीं रहे।” यह सुनकर दिल भर आता है, क्योंकि असल में उनके रिश्ते खत्म हो चुके होते हैं, न कि व्यक्ति।

कहानी की मुख्य धारा

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फिल्म की कहानी तीन बेटों और उनके पिता (नाना पाटेकर) के इर्द-गिर्द घूमती है। तीनों बेटे अपने पुश्तैनी घर को बेचना चाहते हैं, लेकिन नाना पाटेकर इससे इनकार करते हैं क्योंकि यह घर उनकी दिवंगत पत्नी की यादों से जुड़ा हुआ है। बेटे उन्हें बनारस छोड़ आते हैं और वापस आकर यह झूठ बोलते हैं कि पिता का निधन हो गया। नाना, जिन्हें भूलने की बीमारी है, वीरू (उत्कर्ष शर्मा) से मिलते हैं, और आगे की कहानी में कई भावनात्मक मोड़ आते हैं।

फिल्म की खासियत और कमजोरियां

फिल्म का संदेश स्पष्ट है – रिश्तों को संजोना। हालांकि, यह कहानी थोड़ा पुरानी लग सकती है और इसमें मेलोड्रामा भी ज्यादा है। लेकिन नाना पाटेकर का अभिनय इसे देखने लायक बना देता है। फिल्म थोड़ी लंबी है और इसे छोटे स्वरूप में पेश किया जाता तो यह और प्रभावी हो सकती थी।

अभिनय का कमाल

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नाना पाटेकर ने दीपक त्यागी के किरदार को पूरी शिद्दत से निभाया है। उनकी आंखें और आवाज हर भावना को जीवंत बना देती हैं। परितोष त्रिपाठी ने भी अपने किरदार को बेहतरीन तरीके से निभाया है। उत्कर्ष शर्मा का प्रदर्शन औसत है, लेकिन उनके किरदार में सुधार की संभावनाएं हैं। राजपाल यादव के लिए इस तरह के किरदार नए नहीं हैं, लेकिन उनकी अदायगी ठीक रही। सिमरत कौर का अभिनय प्रभावी नहीं था, जबकि राजेश शर्मा ने अच्छा काम किया।

डायरेक्शन और लेखन

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फिल्म को अनिल शर्मा ने लिखा और निर्देशित किया है। उनकी कोशिश प्रशंसनीय है, लेकिन यदि उन्होंने फिल्म को थोड़ा मॉडर्न टच दिया होता, मेलोड्रामा कम रखा होता और इसे छोटा किया होता, तो यह और अधिक प्रभावी हो सकती थी। बावजूद इसके, फिल्म अपनी बात कहने में सफल रहती है।

क्यों देखें यह फिल्म?

यह फिल्म आपको अपने परिवार के करीब लाने का काम करती है। यह रिश्तों के मरते हुए एहसास को फिर से जीवित करती है। आज के समय में, जहां पारिवारिक मूल्यों की अनदेखी होती है, ऐसी फिल्में एक महत्वपूर्ण संदेश देती हैं।

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