Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain | रस के कितने भेद होते हैं?
दोस्तों, हमारे इस आर्टिकल में जानकारी देंगे कि रस क्या हैं Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain और रस के कितने अंग होते है? जिस काव्य के श्रवण से या जिस काव्य के दर्शन से आलौकिक आनन्द प्राप्त हो, काव्य में उसे रस कहा जाता है। यदि रस का अर्थ जाना जाऐ तो रस का अर्थ है आनन्द। काव्य में आने वाले आनन्द को ही रस कहते हैं। जिसके कारण शरीर की इंद्रियां काम या आनन्द अनुभव करती हैं, रस अन्त:करण की वही शक्ति है। इंद्रियों का कार्य, जैस मन की कल्पना, स्वप्न की याद आदि।
रस को काव्य की आत्मा भी कहा जाता है। सरल शब्दों में कहें तो इमोशंस (Emotions) को ही रस कहा जाता है। इमोशंस की वजह से ही हम अपने अंदर के भावों को व्यक्त कर अपनी बात समझा सकते हैं। सन 1974 में बनी एक फिल्म “नया दिन नई रात” में मशहूर अभिनेता संजीव कुमार ने 9 रसों को बखूबी पर्दे पर निभाया था।
Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain (रस के कितने भेद होते हैं)
यदि सब कुछ समाप्त हो जाऐ परन्तु वस्तु रूप और भाव रूप शेष बचा रहे वही रस है। हिन्दी काव्य के अनुसार रस 9 प्रकार के होते हैं और इन 9 रसों को नवरस भी कहा जाता है। 1. श्रृंगार रस, 2. हास्य रस, 3. करुण रस, 4. रौद्र रस, 5. वीर रस, 6. भयानक रस, 7. वीभत्स रस, 8. अद्भुत रस, 9. शांत रस
इन 9 रसों के अलावा ‘वत्सल रस’ को दसवां एवं ‘भक्ति रस’ को ग्यारवा रस भी माना जाता है। वत्सल रस, संतान-विषयक और भक्ति रस, भगवद–विषयक भी कहलाते हैं।
रस के 9 प्रकार का विवरण
जैसा कि हमने उपर बताया कि रस 9 प्रकार के होते हैं। आईये अब इन सभी रसों को विस्तार पूर्वक जानते हैं। प्रत्येक रस के गुण के बारे में जानते हैं।
1. श्रृंगार रस
श्रृंगार रस को रसराज और रसपति भी कहा जाता है। नायक और नायिका के मन में संस्कार रूप में स्थित प्रेम या रति, जब रस की अवस्था को पहुंचकर आस्वादन के योग्य हो जाता है तो वह श्रृंगार रस कहलाता है।
सरल शब्दों में बताए तो श्रृंगार रस में प्रेम समझना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का प्यार जताने का तरीका अलग—अलग होता है।
यदि आप अपने माता—पिता को प्रेम जता रहे हैं तो आपका प्यार का तरीका अलग होगा और यदि आप अपने पति या पत्नी को प्यार जता रहे हैं तो उसका तरीका बिल्कुल अलग होगा। श्रृंगार रस को समझने के लिए सबसे पहले आपको ये समझना होगा की आप किस व्यक्ति के प्रति अपना प्यार जता रहे हैं।
श्रृंगार रस के भेद
सामान्यत: श्रृंगार रस के 2 भेद हैं। पहला है संयोग श्रृंगार रस जिसे संभोग श्रृंगार भी कहा जाता है और दूसरा है वियोग श्रृंगार रस जिसे विप्रलंभ श्रृंगार भी कहा जाता है।
संयोग श्रृंगार रस (संभोग श्रृंगार): संयोग श्रृंगार रस को संभोग श्रृंगार भी कहा जाता है। संयोग श्रृंगार रस में संयोग का अर्थ सुख की प्राप्ति करना है। जहां पर नायक और नायिका के मिलने का संयोग हो वह संयोग श्रृंगार का वर्णन होता है।
वियोग श्रृंगार रस (विप्रलंभ श्रृंगार): वियोग श्रृंगार रस को विप्रलंभ श्रृंगार भी कहा जाता है। वियोग श्रृंगार रस में जहां पर नायक और नायिका के वियोग का वर्णन किया गया हो वह वियोग श्रृंगार कहलाता है।
श्रृंगार रस के उदाहरण:
1. अरे बता दो मुझे कहा प्रवासी है मेरा
इसी बावले से मिलने को डाल रही हूं मैं फेरा
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2. मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरा पति सोई
2. हास्य रस
हास्य रस या यूं कहें कि व्यंग। हास्य शब्द से ही आप आसानी से समझ सकते हैं कि इस रस में काव्य पढ़ के या सुन कर आपको को हास्य का आनंद प्राप्त होता है।
हास्य रस के उदाहरण:
1. बिहसि लखन बोले मृदु बानी,
अहो मुनिषु महाभर यानी।
पुनि पुनि मोहि देखात कुहारू,
चाहत उड़ावन फूंकी पहारू।
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2. मैं यह तोहिं मैं लखी भगति अपूरब बाल।
लहि प्रसाद माला जु भौ तनु कदम्ब की माल।
3. करुण रस
करुण अर्थात शोक। जिस काव्य या खंड में वियोग, प्रेमी से सदैव के लिए बिछुड़ जाना या किसी का मरण से उत्पन्न शोक होए वह करुण रस कहलाता है। करुण रस वियोग श्रृंगार रस से इसलिए भिन्न है क्योंकि वियोग श्रृंगार रस में मिलन की संभावना होती और करुण रस में किसी मिलन की संभावना नहीं होती है।
करुण रस के उदाहरण:
1. राम राम कही राम कही राम राम कही राम,
तनु परिहरि रघुवर बिरह राउ सुरधाम।
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2. अभी तो मुकुट बंधा था माथ,
हुए कल ही हल्दी के हाथ,
खुले भी न थे लाज के बोल,
खिले थे चुम्बन शून्य कपोल।
हाय रूक गया यहीं संसार,
बिना सिंदूर अनल अंगार
वातहत लतिका वट सुकुमार
पड़ी है छित्रधार।।
हमारे इस लेख में हम बता रहे हैं कि Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain आईये अब रस के अन्य प्रकार के भेदों को जानते हैं।
4. रौद्र रस
रौद्र शब्द पढ़ते ही आपको अंदाजा हो गया होगा की यह यहा कोनसी भावना को वयक्त किया जा रहा है। जी हां रौद्र यानी क्रोध। जिस काव्य को पढ़ कर या सुन कर या देख कर मन में गुस्सा/क्रोध उत्पन्न हो तो उसे रौद्र रस कहते हैं।
रौद्र रस के उदाहरण:
1. उस काल मेरे क्रोध के तन कांपने उसका लगा,
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।
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2. श्री कृष्ण के सुन वचन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे
सब शोक अपना भुलाकर, करतल युग मलने लगे।
5. वीर रस
वीर शब्द सुनते ही हमारा पूरा ध्यान उन शूर वीरों पर जाता है जो किसी से नहीं डरते और हर मुश्किल परिस्थिति का डट कर सामना करते हैं। उत्साह वीर रस का स्थाई भाव हैं। वीर रस का स्वर्ण, वर्ण अथवा गौर तथा देवता, इंद्र को कहा गया है।
वीर रस के भेद
दयावीर: जब कोई व्यक्ति किसी बेसहारे और निर्धन व्यक्ति को देखकर अपना निजी लाभ छोड़कर सहायता या सेवा करता है तो वह दयावीर का पात्र होता है।
धर्मवीर: जब कोई व्यक्ति कभी भी किसी भी कठिन परिस्थिति में अपने धर्म के साथ खड़ा रहे और किसी भी कीमत पर अपना धर्म का त्याग ना करे वह धर्मवीर होता है।
युद्धवीर: युद्धवीर रस के अंतर्गत वह व्यक्ति आता है जो व्यक्ति बहुत बहादुर हो और रण में निपुण हो वह युद्धवीर होता है।
दानवीर: जो व्यक्ति अपने लाभ को छोड़कर किसी की सहायता करे और किसी को पता न चलने दे वह दानवीर होता है।
वीर रस के उदाहरण:
1. हे सारथे है द्रोण क्या, देवेंद्र भी आकर अड़े
है खेल क्षत्रिय बालकों का, व्यूह भेदन न कर लड़े
मैं सत्य कहता हूं सखे, सुकुमार मत जानो मुझे
यमराज से भी युद्ध कर प्रस्तुत सदा मानो मुझे।
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2. बादल गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धराधर ओ
ललित ललित, काले घुंघराले
बाल कल्पना के–से पाले
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3. विद्युत्–छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो—
बादल गरजो।
6. भयानक रस
भयानक रस में भय शब्द से ही आप जान सकते हैं कि यह रस डराने वाला होता है। बहुत से लोगों को अलग—अलग चीजों से से डर लगता है। जिस काव्य या खंड में आपको भय या डर उत्पन हो तो वह भयानक रस कहा जाता है।
भयानक रस के उदाहरण:
1. अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलाते कंकाल
कचो के चिकने काले, व्याल, केंचुली, काँस, सिबार
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2. एक ओर अजगर हिं लखि, एक ओर मृगराय
विकल बटोही बीच ही, पद्यो मूर्च्छा खाय
7. विभत्स रस
विभत्स रस में घृणा का भाव उत्पन्न होता है। जब कोई चीज़ या वस्तु आपको पसंद न हो और आपके लिए असहनीय हो, जैसे की आपको कुछ खाना पसंद नहीं है तो आपको उससे घृणा होने लगती है।
विभत्स रस के भेद
विभत्स रस के मुख्यत: 3 भेद हैं जिनमें पहला है ‘क्षोभज’ दूसरा है ‘शुद्ध’ और तीसरा है ‘उद्वेगी’।
विभत्स रस के उदाहरण:
1. आँखे निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ कर आ जाते
शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला-चभला कर खाते
भोजन में श्वान लगे मुरदे थे भू पर लेटे
खा माँस चाट लेते थे, चटनी सैम बहते बहते बेटे।
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2. सिर पर बैठो काग आँखी दोउ–खात निकारत।
खींचत जीभहिं स्यार अतिहि आनन्द उर धारत।।
हमारे लेख Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain में आईऐ अब जानते हैं आखिरी 2 रस के बारे में।
8. अदभुद रस
कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां हो जाती हैं जो हमने कभी सोची भी नहीं होती हैं कि ऐसा भी कुछ होगा या हो सकता है। उस समय हम बहुत आश्चर्यचकित रह जाते है, इसी परिस्थिति को अदभुद रस कहते हैं। जब आप किसी चीज़ या वस्तु को देखकर, सुनकर या पढ़कर अचम्भित हो जाते है तब वह अदभुद रस कहलाता है।
अदभुद रस के भेद
अदभुद रस के दो भेद होते हैं जिसमें पहला भेद है ‘दिव्य’ और दूसरा भेद है ‘आनंदज’
अदभुद रस के उदाहरण:
1. अखिल भुवन चर–अचर सब
हरि मुख में लखि मातु।
चकित भई गग्दद वचन
विकसित दृग पुलकातु।।
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2. दूध–दूध गंगा तू ही अपनी पानी को दूध बना दे
दूध–दूध उफ कोई है तो इन भूखे मुर्दों को ज़रा दे।
9. शांत रस
शांत रस में अध्यात्म और मोक्ष की भावना उत्पन्न होती है। जिसमें परमात्मा के वास्तविक रूप को जान कर शांति मिलती है वह है शांत रस। शांत रस का स्थाई भाव ‘निर्वेद’ यानी उदासीनता होता है।
शांत रस के उदाहरण:
1. देखी मैंने आज जरा
हो जावेगी क्या ऐसी मेरी ही यशोधरा
हाय! मिलेगा मिट्टी में वह वर्ण सुवर्ण खरा
सुख जावेगा मेरा उपवन जो आज हरा
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2. लम्बा मारग दूरि घर विकट पंथ बहुमार
कहौ संतो क्योँ पाइए दुर्लभ हरि दीदार
हमारे लेख Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain में हमने आपको नवरस के बारे में उदाहरण सहित सारी जानकारी दे दी है और अब इन नवरसों के अलावा सूरदास ने वात्सल्य रस की रचना की जिसको हिन्दी काव्य में दसवां रस माना गया है एवं भरतमुनि ने भक्ति रस की रचना की जिसे ग्यारवा रस माना गया हैं। आईये अब हिन्दी काव्य के इन रसों का विस्तार से वर्णन करते हैं।
10. वात्सल्य रस (संतान विषयक)
वात्सल्य रस को संतान विषयक रस भी कहा जाता है। सरल शब्दों में कहें तो जब माता—पिता संतान के प्रति और संतान माता—पिता के प्रति प्रेम या स्नेह का भाव प्रकट करते हैं तो वह वात्सल्य रस होता है।
वात्सल्य रस के उदाहरण:
1. किलकत कान्ह घुटरुवनि आवत।
मचिमय कनक नंद के भांजन बिंब पक्रिये धतत।
बालदसा मुख निरटित जसोदा पुनि पुनि चंदबुलाबन।
अंचरा तर लै सुर के प्रभु को दूध पिलावत।।
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2. झूले पर उसे झूलाऊंगी दूलराकर लूंगी वदन चुम
मेरी छाती से लिपटकर वह घाटी में लेगा सहज घूम।
11. भक्ति रस (भगवद–विषयक)
भक्ति रस को भगवद–विषयक रस भी कहा जाता हैं। इस रस में ईश्वर के प्रति अनुराग या प्रेम का वर्णन होता है। भक्ति रस का स्थाई भाव देव रति है।
भक्ति रस के उदाहरण:
1. मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर है मोरपखा मेरो पति सोई।
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2. उलट नाम जपत जग जाना
वाल्मिक भए ब्रम्हा समाना।
Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain में हमने आपको सारे रसों से अवगत करा दिया है। अब हम आपको रस के अंगो के बारे में भी बता देते हैं।
रस के 4 अंग
रस के 4 अंग होते हैं जो इस प्रकार हैं ‘स्थाई भाव’, ‘संचारी भाव’, ‘विभाग’ और ‘अनुभाव’। आईये अब रस के इन चारों अंगों की संक्षेप में बात करते हैं।
1. स्थाई भाव
इंसान के हृदय में कुछ भाव (Emotions) स्थाई रूप से उपस्थित होते हैं। स्थाई भाव की पुष्टि अवस्था ही रस है। स्थाई भाव संख्या में 9 है इसलिए रस भी 9 है।
रस | स्थाई भाव |
श्रृंगार रस | रति |
हास्य रस | हास |
करुण रस | शोक |
रौद्र रस | क्रोध |
वीर रस | उत्साह |
भयानक रस | भय |
विभत्स रस | जुगुप्सा (घृणा) |
अदभुद रस | विस्मय |
शांत रस | निर्वेद (वैराग्य) |
2. संचारी भाव
जो भाव केवल कुछ समय के लिए संचरण करके चले जाते हैं वे संचारी भाव कहलाते हैं। ये स्थाई भाव को पक्का करके तुरंत चले जाते है। संचारी भाव को व्यभिचारी भाव भी कहा जाता हैं।
संचारी भाव की संख्या:
निर्वेद, दैन्य, मद, उग्रता,शंका, आवेग, श्रम, जड़ता, मोह, चिंता, ग्लानि, विषाद, व्याधि, आलस्य, अमर्ष, हर्ष, गर्व, आसूय, ध्रति, मति, चापल्य, लज्जा, अवहित्था, निद्रा, स्वप्रण, विवोध, उन्माद, मिरगी, स्मृति, ओत्सुकता, त्रास, मरण, वितर्क।
3. विभाग
रसों को प्रज्वलित और उदित करने वाली सामग्री विभाग कहलाती हैं। विभाग के 3 भाग होते हैं आलम्बन उद्दीपन आश्रय
विभाग के तीन भाग
आलम्बन: जिस व्यक्ति या वस्तु के कारण स्थाई भाव व्यक्त होता है उसे आलम्बन विभाग कहते हैं।
उद्दीपन: स्थाई भाव को उद्दीप्त या तीव्र करने वाले कारण उद्दीपन भाव कहलाते हैं।
आश्रय: जिसके हृदय में भाव उत्तेजित होते हैं उसे आश्रय विभाग कहते हैं।
4. अनुभाव
मनोगत भावों को व्यक्त करने वाली शारीरिक और मानसिक चेष्टाएं अनुभाव हैं। अनुभाव के 2 भाग होते हैं कायिक अनुभाव और सात्विक अनुभाव। जानते हैं इनके बारे में।
कायिक अनुभाव: कायिक अनुभाव शारीरिक चेष्टाओ को कहते हैं। ये चेष्टाएं जान–बूझ के प्रयास पूर्वक किए जाते हैं।
सात्विक अनुभाव: सात्विक अनुभाव वो चेष्टाएं होती है जो स्वाभाविक रूप से उत्पन होती हैं। इनकी संख्या 8 हैं जिनमें रोमांच, कंप, स्वेद, स्वरभंग, अश्रु, चेहरे का रंग उड़ना, शरीर की चेष्टा रुक जाना, प्रलय।
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