Greeshma Case: यह महिला क्यों बन गई केरल में पहली मौत की सजा पाने वाली सबसे कम उम्र की आरोपी?

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Greeshma Case: नई दिल्ली, केरल की एक अदालत ने सोमवार को 24 वर्षीय महिला ग्रीष्मा को अपने प्रेमी शेरोन राज की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई। यह मामला दो साल पहले हुए एक जघन्य अपराध से जुड़ा है, जिसमें ग्रीष्मा ने अपने प्रेमी को जहर देकर मार डाला। आइए जानते हैं इस हत्या के बारे में विस्तार से।

हत्या का कारण और साजिश

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ग्रीष्मा ने अपने प्रेमी शेरोन राज को जहर देने का कदम इस कारण उठाया क्योंकि वह अपने रोमांटिक रिश्ते से बाहर निकलना चाहती थी। ग्रीष्मा की शादी पहले से ही तमिलनाडु के एक सैन्यकर्मी से तय हो गई थी, लेकिन शेरोन राज ने उसके साथ संबंध खत्म करने से इनकार कर दिया। ग्रीष्मा के लिए यह स्थिति असहनीय हो गई, और उसने शेरोन राज को मारने की साजिश रच डाली।

जहर देने की योजना

ग्रीष्मा ने 2022 में शेरोन राज को एक आयुर्वेदिक टॉनिक में पैराक्वाट नामक जड़ी-बूटी मिलाकर जहर दे दिया। इस जहर के कारण शेरोन राज के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया, और 11 दिन बाद उसकी मौत हो गई। इससे पहले ग्रीष्मा ने शेरोन को फलों के रस में पैरासिटामोल की गोलियां मिलाकर जहर देने की कोशिश की थी, लेकिन वह इसे कड़वे स्वाद के कारण पीने से मना कर दिया था।

अदालत का फैसला

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स्थानीय अदालत ने ग्रीष्मा को हत्या का दोषी पाया और उसे मौत की सजा सुनाई। अदालत ने यह निर्णय लिया कि अपराध की गंभीरता को देखते हुए आरोपी की उम्र और शैक्षणिक स्थिति को नजरअंदाज किया जाए। ग्रीष्मा ने अपनी सजा में नरमी की मांग करते हुए अपनी शैक्षिक उपलब्धियों और परिवार के हालात का हवाला दिया, लेकिन अदालत ने उसे किसी भी तरह की राहत नहीं दी।

ग्रीष्मा के चाचा निर्मलकुमारन नायर को सबूतों को नष्ट करने के आरोप में दोषी पाया गया और उसे भी सजा दी गई। वहीं, ग्रीष्मा की मां को पर्याप्त सबूत न मिलने के कारण बरी कर दिया गया।

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अदालत का महत्वाकांक्षी फैसला

यह मामला एक दुर्लभ श्रेणी का था, जिसमें न्यायालय ने पीड़ित परिवार की तरफ से प्रस्तुत किए गए सबूतों को स्वीकार किया। विशेष लोक अभियोजक वी.एस. विनीत कुमार ने इस फैसले को अनुकरणीय बताते हुए कहा कि यह एक अहम उदाहरण है, जो अन्य अपराधियों को भी सबक देगा।

केरल में मौत की सजा का इतिहास

ग्रीष्मा की मौत की सजा केरल में किसी महिला को दी गई सबसे कम उम्र की सजा है। यह फैसला इस बात को दर्शाता है कि अदालतें गंभीर अपराधों में कड़ी सजा देने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखातीं। हालांकि, यह भी सच है कि मृत्युदंड के खिलाफ कई आवाजें उठाई जाती रही हैं, और यह मामला देशभर में चर्चा का विषय बन गया है।

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