TM Krishna ने साबित किया कि संगीत किसी विवाद से ऊपर होता है!

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नई दिल्ली, चेन्नई में 25 दिसंबर 2024 को कर्नाटक संगीतज्ञ TM Krishna का पहला संगीत कार्यक्रम हुआ, जो संगीत प्रेमियों से खचाखच भरा रहा। यह आयोजन एक ऐसे समय में हुआ, जब एमएस सुब्बुलक्ष्मी पुरस्कार को लेकर विवाद उठ चुका था। इस पुरस्कार को कर्नाटक संगीत की सर्वोच्च मान्यता माना जाता है और इस विवाद ने टीएम कृष्णा के संगीत कार्यक्रम को और भी महत्वपूर्ण बना दिया।

एमएस सुब्बुलक्ष्मी पुरस्कार पर विवाद

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हाल ही में संगीत कलानिधि एमएस सुब्बुलक्ष्मी पुरस्कार पर एक विवाद सामने आया था। मामला उस समय गरमाया जब वी श्रीनिवासन, जो दिवंगत एमएस सुब्बुलक्ष्मी के पोते हैं, ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उन्होंने तर्क दिया कि यह पुरस्कार किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता है जिसने सुब्बुलक्ष्मी की लगातार आलोचना की हो। श्रीनिवासन का कहना था कि उनकी दादी ने अपनी अंतिम वसीयत में साफ तौर पर कहा था कि उनके नाम पर कोई पुरस्कार नहीं दिया जा सकता।

इस याचिका के बाद, संगीत जगत में इस विषय पर चर्चा का दौर शुरू हो गया और टीएम कृष्णा, जो कि पुरस्कार के प्राप्तकर्ता थे, को इस विवाद का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद, कृष्णा ने अपने संगीत कार्यक्रम में अपनी कला और संगीत के माध्यम से विवादों से बाहर निकलने का प्रयास किया।

TM Krishna का संगीत कार्यक्रम

TM Krishna का 25 दिसंबर को चेन्नई के संगीत अकादमी में हुआ संगीत कार्यक्रम एक ऐतिहासिक क्षण बन गया। जब कृष्णा ने प्रसिद्ध लेखक पेरुमल मुरुगन के शब्दों को संगीतबद्ध किया, तो हॉल तालियों से गूंज उठा। उन्होंने मुरुगन के कालजयी शब्दों को गाया: “सुंधाधिरम वेंडुम, एथाइयुम पेसा, एथाइयुम एझुथा, एथाइयुम पाडा, एथाइयुम पादिका, एथाइयुम केतका” (हमें आज़ादी चाहिए: कुछ भी बोलने की, कुछ भी लिखने की, कुछ भी गाने की, कुछ भी पढ़ने की और कुछ भी सुनने की)।

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इस प्रस्तुति ने न केवल दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि कृष्णा के संगीत की ताकत किसी भी विवाद से कहीं अधिक मजबूत है। संगीत अकादमी के अध्यक्ष एन मुरली ने कहा कि उन्होंने पहले कभी भी इतनी भीड़ नहीं देखी। लोग इस संगीत समारोह से बेहद उत्साहित थे और कार्यक्रम समाप्त होने के बाद संतुष्ट महसूस कर रहे थे।

संगीत अकादमी में ऐतिहासिक भीड़

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TM Krishna के इस संगीत कार्यक्रम में एक अप्रत्याशित भीड़ जुटी। आयोजकों को अतिरिक्त उपाय करने पड़े, जैसे कि मुख्य सभागार के बाहर अतिरिक्त कुर्सियाँ लगाना और एलईडी स्क्रीन के माध्यम से प्रदर्शन को प्रसारित करना। मुरली ने कहा, “यह निस्संदेह कृष्णा के लिए एक शानदार पुष्टि है, जिन्होंने पिछले कई महीनों में बहुत कुछ सहा है।”

यह कार्यक्रम न केवल कृष्णा के लिए एक संगीतात्मक सफलता थी, बल्कि यह एक राजनीतिक और सांस्कृतिक टिप्पणी भी थी, जो उन्होंने अपनी प्रस्तुति के माध्यम से व्यक्त की।

न्यायालय का फैसला और पुरस्कार वितरण

जहां एक ओर संगीत अकादमी में TM Krishna का कार्यक्रम जोर-शोर से चल रहा था, वहीं दूसरी ओर एमएस सुब्बुलक्ष्मी पुरस्कार पर कानूनी लड़ाई जारी थी। मद्रास उच्च न्यायालय ने इस मामले में अपना फैसला सुनाया था कि द हिंदू समूह कृष्णा को पुरस्कार दे सकता है, लेकिन सुब्बुलक्ष्मी के नाम का उपयोग नहीं किया जा सकता। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अपील पर विचार करने से इनकार कर दिया।

हालांकि यह विवाद संगीत प्रेमियों के लिए एक गहन चर्चा का विषय बना हुआ है, लेकिन इस विवाद का असर कृष्णा के संगीत कार्यक्रम पर नहीं पड़ा और वे अपनी कला को पेश करने में सफल रहे।

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