नई दिल्ली, Sharmila Tagore और मंसूर अली खान पटौदी की प्रेम कहानी न केवल सिनेमा और क्रिकेट की दुनिया को जोड़ती है, बल्कि इसमें समाज और धर्म की बंदिशों को चुनौती देने का साहस भी दिखता है। 27 दिसंबर 1968 को इस जोड़े ने शादी की, लेकिन यह सफर आसान नहीं था। Sharmila Tagore ने शादी से पहले इस्लाम धर्म अपनाया और अपना नाम ‘आयशा’ रख लिया।
धर्म परिवर्तन का अनुभव: न आसान, न मुश्किल
सिमी ग्रेवाल के एक साक्षात्कार में Sharmila Tagore ने धर्म परिवर्तन के अनुभव को साझा किया। उन्होंने कहा कि यह न तो “आसान” था और न ही “मुश्किल,” क्योंकि इसे समझने और स्वीकारने की प्रक्रिया थी। उन्होंने यह भी बताया कि वह पहले विशेष रूप से धार्मिक नहीं थीं, लेकिन धर्म परिवर्तन के बाद उन्होंने हिंदू धर्म और इस्लाम दोनों के बारे में गहराई से जाना।
सास से पहली मुलाकात का किस्सा
भोपाल की नवाब बेगम साजिदा सुल्तान, जो मंसूर अली खान की मां थीं, से Sharmila Tagore की पहली मुलाकात बेहद खास और चुनौतीपूर्ण थी। Sharmila Tagore ने बताया कि वह उस समय बहुत घबराई हुई थीं। जब सास ने उनसे पूछा कि वह उनके बेटे के साथ अपने इरादों को कैसे देखती हैं, तो शर्मिला ने सादगी से जवाब दिया, “मुझे अभी तक नहीं पता, मैं उनसे हाल ही में मिली हूँ। मैं उनसे बहुत प्यार करती हूँ, और इस समय, आप उन्हें मुझसे ज्यादा बेहतर जानते हैं।”
शादी के दौरान मिली जान से मारने की धमकियाँ
Sharmila Tagore ने बरखा दत्त के साथ एक अन्य साक्षात्कार में कोलकाता में शादी के दौरान फैले तनाव को याद किया। उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता को टेलीग्राम पर धमकी भरे संदेश मिल रहे थे, जिनमें लिखा था, “गोली बोलेगी।” इसी तरह, पटौदी परिवार को भी ऐसी ही धमकियाँ मिलीं। हालांकि, इन सभी बाधाओं के बावजूद, उनकी शादी और रिसेप्शन सुचारू रूप से आयोजित हुआ।
43 साल तक अटूट रिश्ता
Sharmila Tagore और मंसूर अली खान पटौदी की शादी उस दौर में हुई जब अंतरधार्मिक शादियां आसान नहीं मानी जाती थीं। दोनों ने हर मुश्किल का सामना करते हुए अपने रिश्ते को निभाया। यह जोड़ा 43 साल तक साथ रहा, जब तक 2011 में मंसूर अली खान पटौदी का निधन नहीं हो गया। उनकी प्रेम कहानी आज भी कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।