उपेंद्र की UI Movie Review – क्या यह फिल्म आपकी सोच को बदल देगी?

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UI Movie Review : नई दिल्ली, उपेंद्र, जो कि एक लोकप्रिय निर्देशक और अभिनेता हैं, अपनी नई फिल्म UI के साथ एक बार फिर से सिनेमा की सीमाओं को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इस फिल्म की कहानी, अभिनय, और तकनीकी पहलू एक नए प्रयोग को दर्शाती है, लेकिन क्या ये तत्व दर्शकों को प्रभावित करने में सफल होते हैं? आइए जानें कि UI के बारे में क्या खास है और यह फिल्म कितनी सफल रही है।

फिल्म की कहानी – दो अलग-अलग दुनिया का टकराव

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UI की कहानी एक युवा महिला से शुरू होती है, जो एक क्रूर गिरोह के हमले का शिकार होती है। इस हादसे के बाद, वह वीरस्वामी और उनकी पत्नी के पास शरण लेती है। वीरस्वामी, जो एक अनुभवी ज्योतिषी हैं, भविष्यवाणी करते हैं कि उस महिला के गर्भ में कल्कि भगवान का जन्म होने वाला है। लेकिन कहानी में ट्विस्ट आता है जब महिला जल्द ही एक और बच्चे को जन्म देती है, जिसे एक रहस्यमयी जोड़ा अपहरण कर लेता है और पूरी तरह से अलग परिस्थितियों में पालता है।

बड़ा होते हुए, यह बच्चा खुद को कल्कि भगवान घोषित करता है, जबकि उसका भाई सत्य एक धर्मी व्यक्ति के रूप में समाज की सेवा करता है। दोनों के बीच विचारधाराओं का टकराव बढ़ता है, और इस संघर्ष के माध्यम से फिल्म में बदला, न्याय और मुक्ति जैसे विषयों की खोज की जाती है।

फिल्म की विशेषताएँ – उपेंद्र की विशिष्टता

उपेंद्र, जो कि कहानी, पटकथा और संवादों के निर्देशक हैं, अपनी फिल्म में एक अद्वितीय दृष्टिकोण लाते हैं। UI में उन्होंने अपनी पहचान के अनुसार एक जटिल और अप्रत्याशित कहानी चुनी है। फिल्म के शुरुआती दृश्यों में विचित्र ग्राफिक्स और गूढ़ रेखाएं दर्शकों को उलझाने का काम करती हैं।

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हालांकि, यह प्रयोगात्मक फिल्म दर्शकों को प्रभावित करने की कोशिश करती है, लेकिन इसकी जटिल पटकथा और घटनाओं की अव्यवस्था के कारण कई जगहों पर कहानी में स्पष्टता की कमी है। कथानक के माध्यम से पौराणिक कथाएं, नैतिकता, और सामाजिक मुद्दों को एक असंगत तरीके से प्रस्तुत किया गया है, जिससे फिल्म की समझ में कठिनाई होती है।

अभिनय – उपेंद्र की दोहरी भूमिका

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फिल्म में उपेंद्र ने दोहरी भूमिका निभाई है – एक ओर उन्होंने सत्य का किरदार निभाया है, जो समाज की बेहतरी के लिए काम करता है, और दूसरी ओर कल्कि का किरदार, जो एक स्वघोषित देवता बनकर समाज से प्रतिशोध लेने की सोचता है। उपेंद्र की दोहरी भूमिका फिल्म की कहानी में परतें जोड़ती है, लेकिन इससे फिल्म की स्पष्टता में कोई सुधार नहीं होता।

महिला प्रधान भूमिका में रेशमा नानाय्या को सीमित समय स्क्रीन पर दिखाया गया है, और उनका किरदार केंद्र में नहीं आ पाता। इसके अलावा, मुरली शर्मा, अच्युत कुमार और रविशंकर ने अपने अभिनय से अच्छा काम किया, लेकिन उनके किरदारों में गहराई की कमी महसूस होती है।

तकनीकी पहलू – सिनेमा की कला

फिल्म के संगीत और सिनेमैटोग्राफी ने फिल्म के स्वर को प्रभावित किया है। अजनीश लोकनाथ का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म के अव्यवस्थित वातावरण को सपोर्ट करता है, लेकिन यह एक स्थायी प्रभाव नहीं छोड़ता। वहीं, वेणु गोपाल ने सिनेमैटोग्राफी के माध्यम से कुछ प्रभावशाली दृश्य कैप्चर किए, लेकिन फिल्म की असंगत कहानी ने उनके प्रयासों को फीका कर दिया।

क्या UI सफल रही?

UI एक महत्वाकांक्षी और प्रयोगात्मक फिल्म है, लेकिन इसकी जटिल और अव्यवस्थित कहानी दर्शकों को थका सकती है। उपेंद्र के फिल्म के विशिष्ट तत्व, जैसे कि दोहरी भूमिका और विचित्र कहानी कहने की शैली, सिनेमा के प्रशंसकों के लिए आकर्षक हो सकते हैं। हालांकि, अधिकांश दर्शकों के लिए, यह एक उलझन भरा और निराशाजनक अनुभव हो सकता है। यदि आप उपेंद्र के प्रयोगात्मक सिनेमा के प्रशंसक हैं, तो UI एक बार देखने योग्य हो सकती है, लेकिन यह हर किसी के लिए नहीं है।

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