Lal Bahadur Shastri की रहस्यमयी मौत का सच जानिए!

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नई दिल्ली, भारत के दूसरे प्रधानमंत्री, Lal Bahadur Shastri, का जीवन सादगी, ईमानदारी और दृढ़ निश्चय का प्रतीक था। उनकी 59वीं पुण्यतिथि पर, हम उनके जीवन के उन पहलुओं पर नजर डालते हैं जो आज भी प्रेरणादायक हैं। उनका निधन 11 जनवरी, 1966 को उज्बेकिस्तान के ताशकंद में हुआ, जहां उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध को समाप्त करने वाले ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

जीवन की सादगी और विनम्रता

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Lal Bahadur Shastri का जीवन बेहद साधारण था। उनका उपनाम “शास्त्री” उनके असली नाम का हिस्सा नहीं था। उन्हें यह उपाधि वाराणसी के काशी विद्यापीठ में शिक्षा पूरी करने के दौरान दी गई थी। वे हमेशा सादगी से रहते थे और अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाते थे।

प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल

Lal Bahadur Shastri का प्रधानमंत्री का कार्यकाल केवल 19 महीने का था, लेकिन इस छोटे से समय में उन्होंने देश के लिए बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनके द्वारा दिया गया नारा “जय जवान, जय किसान” आज भी हर भारतीय को गर्व महसूस कराता है।

हरित और श्वेत क्रांति का नेतृत्व

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Lal Bahadur Shastri ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई अहम कदम उठाए। उन्होंने देश में हरित क्रांति की शुरुआत की, जिससे पंजाब, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अनाज उत्पादन में भारी वृद्धि हुई। साथ ही, उन्होंने श्वेत क्रांति को भी बढ़ावा दिया, जिससे दूध उत्पादन में सुधार हुआ। उन्होंने अमूल डेयरी और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड का समर्थन किया।

ईमानदारी और जवाबदेही का प्रतीक

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Lal Bahadur Shastri ईमानदारी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे। रेल मंत्री के रूप में, उन्होंने एक रेल दुर्घटना के लिए खुद को जिम्मेदार मानते हुए इस्तीफा दे दिया था। यह कदम उनकी नैतिकता और जवाबदेही का उदाहरण है।

ताशकंद समझौता और दुखद निधन

1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद, उन्होंने उज्बेकिस्तान के ताशकंद में पाकिस्तान के साथ एक समझौता किया। लेकिन, समझौते के अगले ही दिन, 11 जनवरी 1966 को उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु आज भी रहस्यमय मानी जाती है, और इसे लेकर कई विवाद रहे हैं।

भारतीय इतिहास में अमर योगदान

Lal Bahadur Shastri को 1966 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। दिल्ली में उनके सम्मान में विजय घाट नामक स्मारक बनाया गया। उन्होंने अपने जीवन और कार्यों से यह साबित किया कि एक नेता सादगी और ईमानदारी के साथ भी बड़ा बदलाव ला सकता है।

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