भारत की अर्थव्यवस्था खतरे में? Uday Kotak ने दी बड़ी चेतावनी!

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नई दिल्ली, भारत के सबसे अमीर बैंकरों में से एक Uday Kotak ने हाल ही में भारत की आर्थिक स्थिति को लेकर चिंता जताई है। उनका मानना है कि देश में आर्थिक जोश धीरे-धीरे कम हो रहा है, क्योंकि नई पीढ़ी उद्यमिता के बजाय सिर्फ निवेश करने पर ज्यादा ध्यान दे रही है। उन्होंने सरकार से भी अपील की है कि अमेरिकी नीतियों के कारण हो रहे पूंजी के प्रवाह (कैपिटल आउटफ्लो) पर ध्यान दिया जाए, क्योंकि यह भारतीय बाजार को प्रभावित कर सकता है।

नई पीढ़ी में उद्यमिता की भावना कम क्यों हो रही है?

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Uday Kotak के अनुसार, भारत में कारोबारी घरानों की नई पीढ़ी अपना खुद का व्यवसाय खड़ा करने के बजाय फैमिली ऑफिस या फाइनेंशियल इन्वेस्टमेंट पर ज्यादा ध्यान दे रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि 35-40 साल के लोग सीधे तौर पर अर्थव्यवस्था में अधिक योगदान क्यों नहीं दे रहे हैं? उनका मानना है कि अगर किसी ने अपना पुराना बिजनेस बेच दिया है, तो उसे नए कारोबार में निवेश करना चाहिए, न कि केवल निवेश से पैसा कमाने पर ध्यान देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि उन्हें नई पीढ़ी में सफलता की भूख देखने की उम्मीद है, ताकि वे खुद का व्यवसाय खड़ा करें और भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाएं। उन्होंने कहा कि उन्हें चिंता है कि युवा बहुत जल्दी फाइनेंशियल इन्वेस्टर बन रहे हैं, जबकि उन्हें मेहनत करके नया बिजनेस स्थापित करना चाहिए।

विदेशी निवेशकों का भारतीय बाजार से पैसा निकालना चिंता का विषय

Uday Kotak ने भारत के शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों द्वारा पैसे निकालने (कैपिटल आउटफ्लो) पर भी चिंता जताई। उन्होंने बताया कि भारतीय शेयरों का मूल्यांकन (Valuation) दुनिया के कई बाजारों की तुलना में ज्यादा है, जिसका फायदा विदेशी निवेशक उठा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भारत में खुदरा निवेशक (Retail Investors) हर दिन शेयर बाजार में पैसा लगा रहे हैं, लेकिन विदेशी निवेशक इसका फायदा उठाकर अपना मुनाफा कमा रहे हैं और पैसा वापस ले जा रहे हैं। इससे भारतीय बाजार पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

अमेरिकी नीतियों का भारत पर प्रभाव

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कोटक ने अमेरिकी नीतियों की तुलना एक ‘वैक्यूम पंप’ से की, जो उभरते बाजारों से पूंजी खींच रहा है। उन्होंने कहा कि अगर अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड्स की यील्ड 4.5% से ऊपर जाती है, तो निवेशक सुरक्षित और अधिक रिटर्न देने वाले विकल्प की तलाश में अमेरिका का रुख करेंगे, जिससे भारत जैसे देशों से पैसा बाहर जाएगा।

उन्होंने बताया कि भारत में

  • एफपीआई (Foreign Portfolio Investment) लगभग $800 बिलियन
  • एफडीआई (Foreign Direct Investment) करीब $1 ट्रिलियन
  • विदेशी ऋण (External Borrowings) लगभग $700 बिलियन

यानी कुल प्रत्यावर्तनीय पूंजी (Total Repatriable Capital) $2.5 ट्रिलियन है, जबकि RBI का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग $560 बिलियन ही है। अगर 5% पूंजी भी बाहर जाती है, तो यह $100 बिलियन हो सकता है, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ सकता है।

भारत के लिए अगली रणनीति क्या होनी चाहिए?

उदय कोटक ने सरकार से आग्रह किया कि वित्त मंत्रालय, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और SEBI को एक साथ आकर एक मजबूत रणनीति तैयार करनी चाहिए, जिससे भारत से पूंजी के बड़े पैमाने पर बाहर जाने से रोका जा सके।

उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को तय करना होगा कि

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  1. क्या घरेलू नकदी को नियंत्रित किया जाए?
  2. या रुपये को कमजोर होने दिया जाए?

उन्होंने कहा कि भारत को दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता के लिए मजबूत नीतियों की जरूरत है, ताकि देश की अर्थव्यवस्था को किसी भी संभावित वित्तीय संकट से बचाया जा सके।

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