नई दिल्ली, हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस हमले में कम से कम 26 लोगों की जान चली गई और दर्जनों घायल हो गए। इस दर्दनाक घटना ने कश्मीर घाटी में फिर से डर और तनाव का माहौल बना दिया है। ऐसे समय में, फिल्म “ग्राउंड ज़ीरो” की रिलीज़ होना एक खास मायने रखता है।
Ground Zero Movie: कश्मीर की सच्ची कहानी पर आधारित फिल्म
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फिल्म ‘ग्राउंड ज़ीरो’ एक सच्ची घटना पर आधारित है जो 2000 के दशक की शुरुआत में कश्मीर में घटी थी। फिल्म में बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) के एक बहादुर अधिकारी नरेंद्र नाथ धर दुबे की कहानी दिखाई गई है, जिन्होंने एक ख़तरनाक आतंकी संगठन के ख़िलाफ़ साहसिक ऑपरेशन चलाया था। दुबे ने गाजी बाबा जैसे खतरनाक आतंकी को मार गिराने के लिए दो साल तक लगातार खुफिया ऑपरेशन चलाया।
इमरान हाशमी का बिल्कुल नया अवतार
Ground Zero Movie में इमरान हाशमी ने दुबे का किरदार निभाया है। ये वही इमरान हैं जिन्हें पहले रोमांटिक या ग्रे शेड्स वाले किरदारों के लिए जाना जाता था। इस फिल्म में वह एक ईमानदार, ज़मीन से जुड़े और संवेदनशील अधिकारी के रूप में नजर आते हैं, जो न सिर्फ आतंकियों से लड़ता है बल्कि कश्मीरी युवाओं को मुख्यधारा में लाने की भी कोशिश करता है।
कश्मीरियों के प्रति सहानुभूति की झलक
इस फिल्म की खास बात यह है कि यह केवल गोलीबारी और देशभक्ति की कहानी नहीं है। इसमें कश्मीरी जनता के दर्द, उनकी उलझनों और ग़लतफहमियों को भी दिखाया गया है। एक दृश्य में दुबे कहते हैं, “क्या कश्मीर की ज़मीन ही हमारी है या इसके लोग भी?” यह सवाल आज के समय में बहुत मायने रखता है, जब घाटी में तनाव चरम पर है।
डि-रेडिकलाइजेशन की पहल
Ground Zero Movie में एक स्थानीय युवक ‘हुसैन’ की कहानी भी है जो एक आतंकी संगठन में शामिल होता है, लेकिन दुबे और उनकी पत्नी के स्नेह से वह रास्ता बदल लेता है। यह फिल्म यह बताने की कोशिश करती है कि हर कश्मीरी आतंकी नहीं होता, और संवाद और विश्वास से बदलाव लाया जा सकता है।
Ground Zero Movie का निर्देशन और कमियाँ
फिल्म का निर्देशन तेजस प्रभा विजय देओस्कर ने किया है। उन्होंने घाटी की जमीनी हकीकत को दिखाने की कोशिश की है, हालांकि विजुअल इमेजरी और संवाद कहीं-कहीं कमजोर पड़ते हैं। लेकिन फिल्म की आत्मा – एक संवेदनशील अफसर की कहानी – दर्शकों को ज़रूर छूती है।
पहलगाम हमले से फिल्म की प्रासंगिकता और बढ़ी
जिस वक्त “ग्राउंड ज़ीरो” सिनेमाघरों में लगी, उसी समय पहलगाम में खूनखराबा हुआ। ऐसे में दर्शक फिल्म को एक अलग नज़र से देख रहे हैं। यह फिल्म दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देती है कि क्या वाकई हम आतंक को सिर्फ बंदूक से हरा सकते हैं या फिर ज़रूरत है दिल से जीतने की?