Shantanu Deshpande का बड़ा खुलासा: भारत में काम सिर्फ मजबूरी बन चुका है!

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नई दिल्ली, बॉम्बे शेविंग कंपनी के सीईओ Shantanu Deshpande ने अपनी हालिया सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए भारतीय कार्य संस्कृति और नौकरी के प्रति कर्मचारियों की भावना पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने दावा किया कि भारत में अधिकांश कर्मचारी अपनी नौकरियों से खुश नहीं हैं। उनका कहना है कि यदि लोगों को उनकी वित्तीय आवश्यकताओं के लिए स्थायी पैसा मिल जाए, तो 99 प्रतिशत कर्मचारी अगले दिन से काम करना बंद कर देंगे।

हर वर्ग में नौकरी का एक जैसा अनुभव

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Shantanu Deshpande ने यह भी बताया कि यह समस्या केवल किसी एक वर्ग तक सीमित नहीं है। ब्लू-कॉलर वर्कफोर्स, सरकारी कर्मचारी, गिग वर्कर्स, बीमा सेल्समैन, बैंक कर्मी, छोटे व्यवसाय मालिक, और यहां तक कि स्टार्टअप कर्मचारियों तक सभी के अनुभव लगभग समान हैं। उन्होंने इसे “19-20 का फर्क” कहकर व्याख्या की। यह स्थिति दर्शाती है कि भारत में नौकरी सिर्फ एक मजबूरी बन गई है, खासकर परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए।

“लटकती गाजर” जैसी कार्य संस्कृति

Shantanu Deshpande ने भारत की कार्य संस्कृति की तुलना “लटकती गाजर” से की है। उनका कहना है कि वेतन के लालच में लोगों को घर और परिवार से दूर रखकर काम करवाना एक प्राचीन परंपरा बन चुकी है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह व्यवस्था सिर्फ इसलिए चल रही है क्योंकि इसे 250 वर्षों से सही माना जाता है।

धन असमानता का मुद्दा

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Shantanu Deshpande ने भारत में धन असमानता पर भी अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने खुलासा किया कि देश की संपत्ति का 18 प्रतिशत हिस्सा केवल 2,000 परिवारों के पास है। यह चौंकाने वाला तथ्य है कि ये परिवार करों में 1.8 प्रतिशत से भी कम योगदान देते हैं। उनका मानना है कि ये आंकड़े असमानता को और बढ़ावा देते हैं।

स्व-निर्मित अरबपति और संघर्ष की कहानी

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उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि भारत के 75 प्रतिशत अरबपति स्व-निर्मित हैं। हालांकि, उन्होंने कहा कि यह अंश बहुत छोटा है और “कड़ी मेहनत करो और ऊपर चढ़ो” की कहानी असल में स्वार्थपूर्ण हो सकती है।

दया और उदारता की अपील

अपने विचारों को साझा करते हुए, Shantanu Deshpande ने विशेषाधिकार प्राप्त लोगों से अधिक दयालु और उदार बनने का आग्रह किया। उनका कहना है कि जीवन अधिकांश लोगों के लिए बहुत कठिन है, और केवल कुछ ही लोग इसे बदलने की क्षमता रखते हैं। उन्होंने कहा कि जो लोग अपने जीवन में विशेषाधिकार प्राप्त हैं, उन्हें दूसरों की मदद करनी चाहिए और उनके जीवन को बेहतर बनाने में योगदान देना चाहिए।

संतुलन की आवश्यकता

Shantanu Deshpande की यह पोस्ट इस बात पर जोर देती है कि भारत में काम और जीवन के बीच संतुलन बनाने की सख्त आवश्यकता है। यह केवल आर्थिक असमानता को नहीं बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालता है।

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